Thursday 1 February 2024

खुशवंत सिंह

खुशवंत सिंह जीवनी 
जन्म: 2 फ़रवरी 1915, मृत्यु: 20 मार्च 20
खुशवंत सिंह भारतीय लेखकों और पत्रकारों में हर समय सर्वोपरि रहने वालों में से एक थे। उनका जन्म पाकिस्तान के हदाली में वर्ष 1915 में हुआ था। उनका निंधन 20 मार्च 2014 को 99 वर्ष की आयु में उनके निवास स्थान दिल्ली में ह्रदय गति रुक जाने के कारण हुई थी। वह भारत के प्रीमियम इतिहासकारों और उपन्यासकारों में से थे। साथ ही राजनीतिक टीकाकार, स्तंभकार और एक असाधारण पर्यवेक्षक के रूप में प्रसिद्ध थे एवं एक सामाजिक आलोचक के रूप में चर्चित थे। खुशवन्त सिंह (जन्म: 2 फ़रवरी 1915, मृत्यु: 20 मार्च 2014) भारत के एक प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार थे। एक पत्रकार के रूप में उन्हें बहुत लोकप्रियता मिली। उन्होंने पारम्परिक तरीका छोड़ नये तरीके की पत्रकारिता शुरू की। भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय में भी उन्होंने काम किया। 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे।
खुशवन्त सिंह जितने भारत में लोकप्रिय थे उतने ही पाकिस्तान में भी लोकप्रिय थे। उनकी किताब ट्रेन टू पाकिस्तान बेहद लोकप्रिय हुई। इस पर फिल्म भी बन चुकी है। उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक जिन्दादिल इंसान की तरह पूरी कर्मठता के साथ जिया।
पारिवारिक विवरण
खुशवंत सिंह का परिवार एक धनी परिवार था। उनके पिता का नाम सर शोभा सिंह था जोकि एक बिल्डर और ठेकेदार थे। उनकी माता का नाम लेडी वर्याम कौर था। उनका विवाह कवल मलिक से हुआ था जिनसे एक पुत्र राहुल सिंह थे, और एक पुत्री माला थी। उल्लेखनीय है कि प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री अमृता सिंह उनकी भतीजी थी जोकि उनके भाई दलजीत सिंह की पुत्री है।
शिक्षा
वह लन्दन में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के किंग्स कॉलेज में स्थित इनर मंदिर में और लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज शिक्षा प्राप्त किये थे।
कैरियर
एक पत्रकार के रूप में भी खुशवन्त सिंह ने बहुत ख्याति अर्जित की। 1951 में वे आकाशवाणी से जुड़े थे और 1951 से 1953 तक भारत सरकार के पत्र 'योजना' का संपादन किया। 1980 तक मुंबई से प्रकाशित प्रसिद्ध अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया' और 'न्यू डेल्ही' के संपादक रहे।1983 तक दिल्ली के प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के संपादक भी वही थे। तभी से वे प्रति सप्ताह एक लोकप्रिय 'कॉलम' लिखते हैं, जो अनेक भाषाओं के दैनिक पत्रों में प्रकाशित होता है। खुशवन्त सिंह उपन्यासकार, इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में विख्यात रहे हैं।साल 1947 से कुछ सालों तक खुशवन्त सिंह ने भारत के विदेश मंत्रालय में महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे।वर्तमान संदर्भों और प्राकृतिक वातावरण पर भी उनकी कई रचनाएं हैं। दो खंडों में प्रकाशित 'सिक्खों का इतिहास' उनकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है। साहित्य के क्षेत्र में पिछले सत्तर वर्ष में खुशवन्त सिंह का विविध आयामी योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

खुशवन्त सिंह ने कई अमूल्य रचनाएं अपने पाठकों को प्रदान की हैं। उनके अनेक उपन्यासों में प्रसिद्ध हैं - 'डेल्ही', 'ट्रेन टू पाकिस्तान', 'दि कंपनी ऑफ़ वूमन'। इसके अलावा उन्होंने लगभग 100 महत्वपूर्ण किताबें लिखी। अपने जीवन में सेक्स, मजहब और ऐसे ही विषयों पर की गई टिप्पणियों के कारण वे हमेशा आलोचना के केंद्र में बने रहे। उन्होंने इलेस्ट्रेटेड विकली जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
व्यवसाय
1939-1947: वह उच्च न्यायालय, लाहौर में एक अभ्यासरत वकील थे।
1947: उन्होंने शीघ्र ही स्वतंत्र हुए भारत के लिए एक राजनयिक के रूप में सेवा की।
1951: उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के साथ एक प्रतिष्ठित पत्रकार के रूप में अपना कैरियर शुरू किया।
1951-1953: वह योजना पत्रिका के संस्थापक और संपादक भी थे।
1969-1978: वह वीकली आफ इंडिया, बाम्बे के संपादक भी थे।
1978-1979: वह नेशनल हेराल्ड के( नई दिल्ली) एडिटर-इन-चीफ भी थे।
1980-1983: वह हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक थे।
उनका शनिवार को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित "एक और सभी के प्रति द्वेष के साथ" स्तंभ (कालम) अब तक का सबसे अच्छी तरह से पसंद स्तंभों(कालमों) में से एक था।
ऑनर्स और पुरस्कार
1974 में वह भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किए गए। हालांकि 1984 में उन्होंने भारतीय सेना के स्वर्ण मंदिर में घुसने और एक अभियान चलाने के कारण विरोध स्वरुप इस सम्मान को लौटादिया था।
वर्ष 2007 में, खुशवंत सिंह को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
वर्ष 2006 में उन्हे पंजाब सरकार द्वारा पंजाब रतन अवार्ड से सम्मानित किया गया।
जुलाई 2000 में उन्हें अपनी बहादुरी और ईमानदारी "प्रतिभाशाली तीक्ष्ण लेखन." के लिए सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस संगठन द्वारा "आनेस्ट मैन आफ द ईयर अवार्ड” दिया गया था। सम्मान समारोह के समय, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने उन्हें "विनोदी लेखक और इश्वर के साथ-साथ मानव भलाई के लिए कट्टर आस्तिक और नास्तिक साथ ही एक देखभाल करने वाला और एक साहसी मन." वाले लेखक के रूप में वर्णित किया था।
2010 में उन्हे भारत के साहित्य अकादमी द्वारा साहित्य अकादमी फेलोशिप पुरस्कार दिया गया था।
2012 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें अखिल भारतीय अल्पसंख्यक फोरम वार्षिक फैलोशिप का अवार्ड दिया गया था।
उन्हें आर्डर आफ खालसा (निशान- ए-खालसा) सम्मान दसे भी सम्मानित किया गया था।

उपलब्धियां

खुशवंत सिंह वर्ष 1986 से वर्ष 1980 तक राज्य सभा के सदस्य रहे। कांग्रेस पुस्तकालय उनके 99 कार्यों जोकि खुशवंत सिंह द्वारा किए गए है रखे हुए ह
किताबें और वृत्तचित्र
खुशवंत सिंह ने अपनी रचना कल्पना और अकल्पना दोनों वर्गों में की थी। वह मुख्य रूप से अंग्रेजी भाषा में लिखा करते थे। उनकी प्रमुख पुस्तकें ट्रेन टू पाकिस्तान (जिसका प्रकाशन 1953 में हुआ था) जोकि इंटरनेशनल अक्लेम और ग्रूव प्रेस अवार्ड पुरस्कार 1954 से पुरस्कृत थी। इस पुस्तक में 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन को दर्शाया गया है। उनका दूसरा प्रमुख काम भारत की इमरजेंसी पर निबंध के सन्दर्भ में ‘ह्वाई आई सपोर्ट इमरजेंसी’ (2004 में प्रकाशित) नाम से है। उनका तीसरा प्रमुख काम देल्ही:अ नावेल है। उन्होंने आई शैल नॉट हियर द नाईटेंगल (1959 में प्रकाशित) पुस्तक को भी लिखा है। पोर्ट्रेट आफ़ लेडी: कलेक्टेड स्टोरी एक लघु कहानी संग्रह के रूप में उन्होंने प्रस्तुत की थी।
उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह और सिख साम्राज्य के पतन के अलावा भी कई अन्य पुस्तकें लिखी।
इनके अलावा, उन्होंने सिख इतिहास पर दो खंडों में एक क्लासिक किताब ‘हिस्ट्री आफ़ सिख’(1963 में प्रकाशित) लिखा था. उनके अन्य चर्चित कार्यों में ट्रुथ,लव एंड अ लिटिल मैलिस उनकी अत्मकथा के रूप में (2002 में प्रकाशित), सेक्स, स्कॉच एंड स्कालरशिप और इन द कम्पनी आफ ओमेन (1999 में प्रकाशित) है।
गौरतलब है कि 98 वर्ष की आयु में उनकी अंतिम लिखित द गुड,द बैड एंड द रेडीकुलस शीर्षक से थी। उन्होंने हुमारा कुरैशी के साथ कई पुस्तकों में सहलेखन कार्य किया था।
योगदान
साहित्य के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय था। उन्होंने अपने व्यंग्य लेखन के माध्यम से अपने पाठकों का भरपूर मनोरंजन किया था।
निधन
जाने माने पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह का 20 मार्च, 2014 गुरुवार को निधन हो गया। वह 99 वर्ष के थे और उनका जन्म पंजाब (अब पाकिस्तान) में वर्ष 1915 में हुआ था। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके पुत्र और पत्रकार राहुल सिंह के अनुसार उन्होंने सुजान सिंह पार्क स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। उन्हें सांस लेने में कुछ परेशानी थी। खुशवंत सिंह भारत के प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार थे। एक पत्रकार, स्तंभकार और एक बेबाक लेखक के रुप में उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली और अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुस्कारों से सम्मानित भी किया गया। उन्हें पद्मश्री, पद्म विभूषण जैसे सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है। खुशवंत सिंह 'योजना', नेशनल हेराल्ड, हिन्दुस्तान टाइम्स और 'दि इलेस्ट्रेटेड विकली ऑफ़ इंडिया' के संपादक रहे थे। इनके अनेक उपन्यासों में सबसे अधिक प्रसिद्ध 'डेल्ही', 'ट्रेन टू पाकिस्तान', 'दि कंपनी ऑफ़ वूमन' हैं। वर्तमान संदर्भों और प्राकृतिक वातावरण पर भी उनकी कई रचनाएं हैं। दो खंडों में प्रकाशित 'सिक्खों का इतिहास' उनकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है। लगभग 70 वर्ष साहित्य के क्षेत्र में खुशवंत सिंह का विविध आयामी योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। साल 1947 से कुछ सालों तक खुशवंत सिंह जी ने भारत के विदेश मंत्रालय में विदेश सेवा के महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। साल 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे।
प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें
उपन्यास-
दिल्ली (किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
पाकिस्तान मेल (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
औरतें (राजपाल एंड सन्ज़, नयी दिल्ली से)
सनसेट क्लब (राजपाल एंड सन्ज़, नयी दिल्ली से)
टाइगर टाइगर (राजपाल एंड सन्ज़, नयी दिल्ली से)
बोलेगी न बुलबुल अब (राजपाल एंड सन्ज़, नयी दिल्ली से)
कहानी-
प्रतिनिधि कहानियाँ (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
खुशवंत सिंह की सम्पूर्ण कहानियाँ (राजपाल एंड सन्ज़, नयी दिल्ली से)
आत्मकथा/संस्मरण-
सच, प्यार और थोड़ी सी शरारत (अनुवाद- निर्मला जैन) [राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से]
मेरे मित्र : कुछ महिलाएँ, कुछ पुरुष (किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
मेरी दुनिया मेरे दोस्त (राजपाल एंड सन्ज़, नयी दिल्ली से)
इतिहास-
सिखों का इतिहास (दो खंडों में, अनुवाद- उषा महाजन) [किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली से]
अन्य-
मेरा लहूलुहान पंजाब (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से)
सम्मान
भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें 1974 में पद्म भूषण और 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया



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